“ हे परमेश्वर ! आप कहां हैं ?” मुझे आपकी जरूरत है । “ मैं आपको चाहता हूं” “ मैं आपको कैसे पाऊं?” क्या यह आपका हृदय की सच्ची पुकार है ? क्या आप संपूर्ण हृदय से परमेश्वर की खोज कर रहे हैं , उनके पास पहुंच पा रहे हैं, उनको जानने की इच्छा रखते हैं ? लेकिन किसी भी तरह से आप परमेश्वर को पाते नहीं दिख रहे हैं ।
आप अपने खोज में अकेले नहीं है । मनुष्यों ने प्रत्येक युग में सर्वत्र परमेश्वर की खोज की है । दो हजार वर्ष पहले एक धनी युवक ने दौड़ते हुए यीशु के पास आकर यह पूछा , हे उत्तम गुरु , अनंत जीवन का अधिकारी होने के लिए मैं क्या करूं ? ( मरकुस १० : १७ ) । जब पतरस ने पेन्तेकोस्त के दिन प्रचार किया , लोगों ने उससे यह पूछा, “ हम क्या करें ? “ अथवा हम कैसे परमेश्वर का पता लगायें ? आज इस उग्र संसार का प्रचलित अशांति यह है कि वे परमेश्वर और उनके प्रेम के लिए मौन रोदन करते हैं ।
सभी मानव जाति को परमेश्वर को प्राप्त करना ही चाहिए । जब तक हम जीवित परमेश्वर से भेंट नहीं करते तब तक हमारा हृदय बेचैन रहेगा । दूसरा किसी भी तरीका से हम मन की शांति और आत्मा की शांति को अनुभव नहीं कर सकते, जब तक हम परमेश्वर को प्राप्त न करें और उनके साथ ना चलें । यीशु ने कहा, “ है सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे हुए लोगों - मेरे पास आओ , मैं तुम्हें विश्राम दूंगा “( मत्ती ११ : २८ ) । हमें परमेश्वर की जरूरत को बेहतर रूप से जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि हम परमेश्वर के द्वारा और उसी के लिए बनाए गए हैं । हमारे रूप रंग भिन्न-भिन्न है फिर भी हम उसी के स्वरूप और समानता में सृजे गए हैं । ( उत्पत्ति १: २६ ) हमें जीवित आत्मा के साथ सृष्टि किया गया है जो सृष्टिकर्ता के साथ संगति रखने के लिए प्यासा है । “ जैसे हिरनी नदी के जल के लिए हांफती है वैसे ही “ हे परमेश्वर मैं तेरे लिए तरसता हूं । जीवित परमेश्वर का मैं प्यासा हूं , मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा ?” (भजन ४२: १-२ ) । जीवित परमेश्वर ही मनुष्य के जीवित आत्मा को तृप्त कर सकता है ।
राजा दाऊद आंतरिक अनुभव को इस प्रकार व्यक्त करते हैं, “ मुझे कुछ घटी ना होगी “ ( भजन २३: १ ) । उनकी सभी ज़रूरतें पूरी हो गई । क्योंकि वह जानता था , जब किसी व्यक्ति के साथ सृष्टिकर्ता की मुलाकात होती है तभी शांति मिलती है । “ क्योंकि वह अभिलाषी जीव को संतुष्ट करता है , और भूखे को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है ।” ( भजन १०७ : ९ )
परमेश्वर सत्य है । हालांकि आप देख नहीं पाते, उसे समझ नहीं पाते और उनसे मिल नहीं सकते । इससे उनकी वास्तविकता से कोई फर्क नहीं पड़ता । वे कल भी थे , आज भी हैं और हमेशा रहेंगे । परमेश्वर एक है । उन पर कभी शक मत कीजिए । उनकी मौजूदगी पर संपूर्ण विश्वास रखें और यह भरोसा करें कि वह आपसे प्रेम करते हैं ।
परमेश्वर हर जगह है । याकूब के कुएं के पास यीशु ने औरत से कहा , परमेश्वर एक आत्मा है, और वह किसी भी जगह, कहीं पर भी किसी भी समय मिल सकता है । वह अपने आप को एक निश्चित जगह पर , जैसे गली, पहुंच से दूर ( स्वर्ग ) , या किसी आराधनालय में सीमित नहीं रखता है । आप उन्हें पहाड़, घाटी , आकाश , समुद्र , अपने घर में या किसी भी जगह पर पा सकते हैं । वह हर पल आपके चारों ओर से घिरा हुआ है ।
परमेश्वर का एक जन - याकूब ने कहा , “ निश्चय इस स्थान में यहोवा है , और मैं इस बात को जानता था ।” ( उत्पत्ति २८ : १६ ) । प्राय हम सभी संसारिक कार्यों में व्यस्त होते हैं , इस कारण परमेश्वर हमारे पास होने पर भी हम उन्हें नहीं जानते हैं । उसकी मृदु आवाज को हम नहीं पहचानते हैं । इसलिए हम उनसे मिलने के संबंध में एक आश्चर्य घटना की बात जोड़ रहे हैं, ( देखें , १ राजा १९ : ९ - १३ ) । हमें रुकना, देखना और सुनना चाहिए , और तब विश्वास के द्वारा ही हम उन्हें देख, सुन और समझ पाएंगे ।
आपको अंधकार में यूं ही परमेश्वर को खोजने की जरूरत नहीं है । वह आपसे छिपा हुआ नहीं है । वह आपका इंतजार कर रहा है । बहुत पहले जब आपने उसे खोजना शुरू किया वह तभी से आपका इंतजार कर रहा था कि आप उसे खोजें । वह आपको अपने अनंत परिवार में देखना चाहता है , जहां वह आपको व्यक्तिगत रूप से प्रेम और संरक्षण दे सके । क्या आप अपने में स्वयं को खाली , अशांति , भटका हुआ , दोषी या मृत्यु से डरा हुआ पाते हैं ? तो परमेश्वर आपको बुला रहा है , क्योंकि वह आपको खोना नहीं चाहता । यह आपका पहला अथवा अंतिम बुलाहट हो सकता है । “ यदि आज तुम उनकी आवाज सुनते हो , तो अपने हृदय को कठोर मत करो ।” ( भजन १५ : ७ - ८ ) ।
हम सब ने पाप किया है , “ कोई भी धर्मी नहीं है एक भी नहीं ,” ( रोमी ३ : १० ) परमेश्वर पवित्र है , इसलिए पाप से घृणा करते हैं । जब हम परमेश्वर की उपस्थिति में आते हैं तो हमें पवित्र वचन द्वारा बताए हुए ज्ञान के अनुसार अपने पापों से मुक्त होना चाहिए । एक अच्छा नैतिक जीवन हमारे पापों की पश्चाताप और उद्धार के लिए काफी नहीं है । सही पश्चाताप ही हमें हमारे पापों से मुक्त कर सकती है ।
परमेश्वर ने अपने महान प्रेम से, उनके पास पहुंचने का एक मार्ग तैयार कर दिया । “ इस जगत से परमेश्वर ने ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया , ताकि जो कोई उसे पर विश्वास करें वह नाश न हो , परंतु अनंत जीवन पाए ।” ( याकूब ३ : १६ ) यीशु ने कहा , “ मार्ग , सत्य और जीवन मैं ही हूं , मेरे बिना कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता ।” ( यूहन्ना १४ : ६ ) । जब दरोगा ने पूछा, “ कि मैं उद्धार पाने के लिए क्या करूं ?” तब पतरस ने उत्तर दिया, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करो, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा ।” ( प्रेरित १६ : ३० - ३१ ) ।
जब नीकुदेमुस ने उद्धार प्राप्त करने के बारे में यीशु से पूछा, यीशु ने कहा, “ मैं तुमसे सच-सच कहता हूं , यदि कोई नए सिरे से न जन्मे तो वह परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ।” ( यूहन्ना ३: ३ ) क्या नीकुदेमुस की तरह आप भी पूछते हैं कि उद्धार कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? नए सिरे से जन्म लेने का मतलब है, कि मसीह जो परमेश्वर का पुत्र है, उसे अपना उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करना । जैसे ही आप परमेश्वर के अद्भुत प्रेम को अनुभव करते हैं वैसे ही आप परमेश्वर के सामनेअपने को पापी और अशुद्ध महसूस करेंगे । आपके पापों के लिए यीशु का प्रेम पूर्ण बलिदान आपके हृदय में एक गहरा पश्चाताप लाता है , “ यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है । ( १ यूहन्ना १: ९ ) ।
जब आप यीशु पर विश्वास करते हैं, तो आप अपने सभी इच्छाओं को परमेश्वर को समर्पित करने में सक्षम हैं । इस प्रकार आप एक नई आत्मा पाते हैं । और परमेश्वर की आत्मा आपको आपकी सारी इच्छाओं से नकारकर पापों से मोड़ लेती है । तब आप शांति और अपने को परमेश्वर के करीब पाएंगे । “ अतः जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें, जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं , हमारी पहुंच भी हुई और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमंड करें ।” ( रोमी ५ : १-२ ) ।
क्या आप सचमुच परमेश्वर को खोजना और उसके साथ चलना चाहते हैं ? चुनाव आपका और सिर्फ आपका ही है । आपके पास खोने को कुछ नहीं है, पर पाने को सब कुछ है । यदि आप रुक कर परमेश्वर की ओर अपना मुंह मोड़ेंगे और चलेंगे तो आप निश्चय ही उन्हें पाएंगे । एक खोजने वाली आत्मा और एक खोजने वाली उद्धारकर्ता हमेशा लक्ष्य को पाले हैं । जब आप परमेश्वर को खोजेंगे जो जीवन का स्रोत है, तो वह आपको नया जीवन एक नया हृदय और एक इच्छा देगा कि हम उनका अनुगमन करें । सभी चीज न हो जाएगी । ( २ कुरिन्थि ५ : १७ )
अपने पापों की क्षमा के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें, उससे कहे आप अपने आप से थक चुके हैं, उसके पीछे चलने की इच्छा रखते हैं, वह जहां भी ले चले । जैसे ही आप उसके आज्ञाकारिता में चलेंगे , प्रभु की शांति सदा आपके साथ रहेगी ।