एक सही एवं भरोसेमंद भवन का निर्माण तभी संभव है, जब साहुल कहलानेवाले यंत्र का प्रयोग किया गया हो । बिना उसके मकान बनानेवाला कारीगर चाहे कितना भी दक्ष और ईमानदार क्यों ना हो, संभवतः खतरनाक गलतियां करेगा।
उसी प्रकार यह आवश्यक है कि हमारा जीवन और विश्वास परमेश्वर के वचन रूपी साहुल से निर्देशित हो । पढ़ें भजन संहिता ११९ : १०५ ; २ तीमुथियुस ३ : १५ - १७ ; आमोस ७ : ८ !
एक प्रचलित धारणा है : ‘ जब तक हम ईमानदार है , तब तक हम जो कुछ भी विश्वास करते हैं , कोई फर्क नहीं होता ।’ हां, जो भी हो, प्रत्येक व्यक्ति को विश्वास रखने और उचित कार्य करने में ईमानदार होना चाहिए - यह सही बात है ; लेकिन हमारा विश्वास और हमारे कामों सच आधार पर स्थापित होना चाहिए । हमें वैसे व्यक्ति के लिए असामान्य आदर होता है, जो अपने विश्वास किए धर्म में इतना ईमानदार हो कि उनके लिए मर जाने तक तैयार हो ; किंतु इस बात में केवल ईमानदार होना ही पर्याप्त नहीं है ।
न्यूयॉर्क के मैनहैटन शहर के बोरो में दवाई बेचनेवाले व्यक्ति ने ‘बेरियम सल्फेट’ नामक दवाई के नुस्खा की जगह पर ‘बेरियम सल्फाइट’ दे दिया । इन दोनों दवाइयां के नामों में केवल एक अक्षर की ही भिन्नता है । एक का प्रयोग चंगाई के उद्देश्य से किया जाता है , जबकि दूसरा भयानक विष है । वह स्त्री , जिसने इस दवाई को खाया , मर गई । दवाई बेचने वाला व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से यह सोचकर ईमानदार था कि उसने सही दवाई दी थी । ऐसे मामले जहां परिणाम इतना भयंकर होता है , वह निश्चितता का होना जरूरी होता है ।
वह स्त्री उसे दवाई समझकर अलमारी से निकाल कर लेती रही , वह विष साबित हुआ और वह मर गई । यदि हम गलत चीज में विश्वास रखते हैं , तो हमारी ईमानदारी हमारी आत्मा को कदापि नहीं बचा सकती । गलत बात पर विश्वास कर लेना , गलती से जहर पी लेने की बात से कहीं अधिक खतरनाक हो सकता है । प्राण को खो देना एक गंभीर बात है , पर अपनी आत्मा से पंगा लेना हमारे अनंत भाग्य में फर्क उत्पन्न कर सकता है ।
‘ जब तक हम ईमानदार हैं , तब तक हम जो कुछ भी विश्वास करें कोई फर्क नहीं होता ’ - इस कथन के आधार पर कितने आदमी इस प्रकार से सोचते हैं कि हर प्रकार का विश्वास ठीक होता है और यदि हम ईमानदारी से अपने विश्वास में बने रहें , तो हमारा विश्वास हमको स्वर्ग में ले जाएगा ; किंतु यह बात सत्य नहीं है ।
प्रेरित पौलुस जब मसीहियों को सताता था , तब वह अत्यंत ही उत्साही और निष्कपट था ; किंतु उसे एक नई मन की , एक नए जन्म की आवश्यकता थी । कब से और कितनी ईमानदारी के साथ वह अपने मार्ग पर चलता रहा , कोई मतलब नहीं होता ; क्योंकि उस मार्ग पर उसका नाश हो जाना निश्चित था ( प्रेरितों के काम ९ अध्याय ) ।
पांच मूर्ख कुंवारीयां अत्यंत ही ईमानदार थी , जब उन्होंने विवाह - भोज में आकर कहा : “ हे स्वामी , है स्वामी ! हमारे लिए द्वार खोलिए ! ” ; किंतु उसने कहा : “ मैं तुम्हें नहीं जानता । ” ( देखें मत्ती २५ : १ - १३ ) ।
बाल के भविष्यवक्ताओं ने जब कर्मेल पर्वत पर अपने ईश्वर से आकाश से आग बरसाने की मांग की , तो वे भी अपनी पुकार में अत्यंत ईमानदार थे । वे इस कदर ईमानदार थे कि उन्होंने ऊंचे शब्द से पुकारा और छुरियों और बरछियों से अपने आप को यहां तक घायल किया कि लहू लुहान हो गए ; किंतु उन्हें कोई भी उत्तर नहीं मिला । ( देखें १ राजा 18 अध्याय ) ।
बहुत से लोग लकड़ी और पत्थर से बने आकृतियों को अत्यंत ही उत्साह और उत्सुकत्ता के साथ पूजते हैं । कुछ लोग तीर्थ - यात्रा पर जाते हैं , या कांटों से बनी शैंया पर लौटते हैं । कुछ तो व्यक्तिगत रूप से अपने विश्वास हेतु , जिसे वे उपयुक्त समझते हैं , अपने प्राण तक देने के लिए तैयार रहते हैं । क्या उनकी ईमानदारी और स्वेच्छा से बलिदान करना और कष्ट भोगना उनके धर्म की सत्यता को प्रमाणित करता है ?
प्रभु यीशु कहते हैं : “ जो मुझे , ‘ हे प्रभु ! हे प्रभु ! ’ कहते हैं , उनमें से हर एक जन स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकेगा । केवल वह मनुष्य , जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है , परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेगा ” ( मत्ती ७ : २१ ) । बहुत सारे लोग पूरी निष्ठा से सोचते हैं कि उनके लिए स्वर्ग का दरवाजा खुला होगा ; क्योंकि उन्होंने प्रभु के नाम में भविष्यवाणीयां की , दुष्टात्माओं को निकाला और बहुत सारे आश्चर्यचकित कार्य किए ; किंतु वह उन्हें उत्तर देगा : “ मैंने तुमको कभी नहीं जाना ; हे कुकर्म करने वालों , मेरे पास से चले जाओ ! ” ( मत्ती ७ : २३ ) ।
उद्धार पाने के लिए आवश्यक है कि आप प्रभु यीशु को जानें और उनकी इच्छा को पूर्ण करें । परमेश्वर आप पर जो कुछ प्रकट करते हैं , इसके प्रति आपका पूर्ण समर्पण चाहिए । परमेश्वर का वचन उस वक्त आपकी अचूक अगुवाई करेगा , जब तक आप पवित्र बाइबल में सत्य को खोजते हैं । इस पवित्र बाइबल में हम पढ़ते हैं : “ तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है ” ( भजन संहिता ११९ : १०५ ) ; और इसके साथ यह भी पढ़ते हैं : “ तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढते हो ; क्योंकि तुम समझते हो कि उसमें तुम्हें अनंत जीवन मिलता है ; और यही वह है जो मेरे विषय में गवाही देता है ” ( यूहन्ना ५ : ३९ ) ।
पवित्र बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि प्रभु यीशु के पीछे चलने वालों को क्रूस उठाकर जीवन व्यतीत करना होगा , अपने आप का इन्कार करना पड़ेगा , निःस्वार्थ भावना से समर्पित होना पड़ेगा । इन शिक्षाओं की अवहेलना करने का अर्थ है कि शोक जनक रूप से परमेश्वर की इच्छा के प्रति जो हमारी समाज है , उसमें हमने कहीं - न - कहीं भूल कर दी है ।
जब हम पश्चाताप करते हैं और प्रभु यीशु हमारे दिल में प्रवेश करते हैं , तो उसकी पवित्र आत्मा हमें नई दिशा देती है । उसकी आत्मा हम में साक्षी देती है कि हम उसकी संतान हैं । “ जो लोग परमेश्वर की आत्मा के द्वारा चलते हैं , वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं । आत्मा स्वयं हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की संतान हैं ” ( रोमियों ८ : १४ , १६ ) ,।