हर एक को स्वयं यह महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना चाहिए : “उद्धार पाने के लिए मैं क्या करूं ?” कई लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि वे बचाए जा चुके हैं , इसके बावजूद यीशु ने कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु’, ‘ हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर एक जन स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेगा; परंतु केवल वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है , परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेगा ” ( मत्ती ७ : २१ ) । बचाए जाने के लिए इस बात पर विश्वास करना आवश्यक है कि मसीह हमारे पापों को क्षमा करेंगे । उसके पश्चात हम अपने पापों का पश्चाताप करें , एक पवित्र जीवन जीए और एक दूसरे से प्रेम करें । क्योंकि अनेकों धर्मों द्वारा पहले से तैयार की गई बहुत सारी शिक्षाओं के बीच भी यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि ‘ वास्तविकता में सत्य क्या है ? ’
नए सिरे से जन्म लेने का अर्थ क्या है ?
बहुत सारे लोग नए जीवन का अनुभव किए बिना ही प्रभु की सेवा करते हैं ; किंतु क्या वे बचाए जा चुके हैं ? यीशु ने कहा : “ यदि कोई मनुष्य नए सिरे से न जन्में , तो वह परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ” ( यूहन्ना ३ : ३ ) । जब यीशु ने यह संसार छोड़ा , तो उसने पवित्र आत्मा को भेजा , “ जब वह आएगा , तब संसार को पाप , धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा ” ( यूहन्ना १६ : ८ ) । पवित्र आत्मा मनुष्यों को पाप के प्रति सचेत करता है । जब मनुष्य अपने पापों के बोझ का अनुभव करता है , तो वह अपने मन में उसका तिरस्कार करने लग जाता है । यदि वह आपको नम्र बनाता है और यीशु में विश्वास के द्वारा अपने पूरे मन से परमेश्वर को पुकारता है , तो परमेश्वर उसको क्षमा करेगा । “ इसलिए अब अपने पापों से मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारा पाप मिट ” ( प्रेरितों ३ : १९ ) । पाप से पश्चाताप करने का अर्थ होता है , कायल होकर पाप का परित्याग और नवजीवन के मार्ग की ओर मुड़ना । जब ऐसा है , तब पवित्र आत्मा मन में प्रवेश कर जाता है और आमुख व्यक्ति नए सिरे से जन्म ले लेता है । “ यदि कोई व्यक्ति मसीह में है , तो वह नई सृष्टि है ; पुरानी बातें बीत गई है । देखो , वे सब नई हो गई है ” ( २ कुरिन्थियों ५ : १७ ) ।
किसे नए सिरे से जन्म लेने की आवश्यकता है
“ क्योंकि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से वंचित हो गए हैं ” ( रोमियो ३ : २३ ) । पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर भविष्यवक्ता यशायाह ने मनुष्य जाति के पाप के लिए हमारे प्रभु यीशु की पीड़ा की भविष्यवाणी की । उसने कहा : “ हम तो सब के सब भेड़ों की नाईं भटक गए थे ; हममें से हर एक ने अपना - अपना मार्ग लिया ” ( यशायाह ५३ : ६ ) । सत्य की खोज करने वाले नीकुदेमुस से यीशु ने स्पष्टता कहा कि जब तक कोई नए सिरे से जन्म नहीं ले लेता , परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता । यह आत्मिक जन्म पवित्र आत्मा का कार्य है । सभी को जो उद्धार चाहते हैं , इस जन्म के अनुभव की आवश्यकता है ।
वे सब जो अपने पाप की बोझ से चिंतित और थके हुए हैं , यीशु के पास आने के लिए आमंत्रित हैं और अपने पाप से क्षमा प्राप्त करें । यीशु आमंत्रित करते हैं : “ हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे हुए लोगों मेरे पास आओ ! मैं तुम्हें विश्राम दूंगा । मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो ; और मुझसे सीखो ; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे । क्योंकि मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है ” ( मत्ती ११ : २८ - ३० ) । यीशु ने दुःख उठाया , अपना लहू बहाया और सलीब पर मर गया । “ वह हमारे पापों का प्रायश्चित है और केवल हमारे ही नहीं , वरन् सारे संसार के पापों का भी ” ( १ यूहन्ना २ : २ ) ।
पश्चाताप
पश्चाताप , अंगीकार और क्षतिपूर्ति - ये समस्त बातें पूरे मन , आत्मा , मस्तिष्क और शक्ति के साथ प्रभु यीशु के पास आने से जुड़ी हुई बातें हैं । “ जो अपने अपराध छिपा रखता है , उसका कार्य सफल नहीं होता , परंतु जो मान लेता है और छोड़ भी देता है , उस पर दया की जाएगी ” ( नीति वचन २८ : १३ ) । “ यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है ” ( १ यूहन्ना १ : ९ ) । यदि हमने अपने पड़ोसी या सहकर्मी के साथ गलत किया है , तो हमें अपने पापों का अंगीकार करके उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए और जहां आवश्यक है क्षतिपूर्ति करें ; जैसा झक्की ने किया , जो खड़े होकर प्रभु से कहा : “ हे प्रभु , मैं अपनी आधी संपत्ति गरीबों को देता हूं और मैंने यदि किसी का कुछ भी अन्याय पूर्वक ले लिया है , तो उसे चौगुना लौटा देता हूं ” (लूका १९ : ८ ) ।
विश्वास और आज्ञाकारिता
एक बार जब हमने नई जन्म का अनुभव कर लिया है , तो हम विश्वास पूर्वक मसीही जीवन जीने का प्रयास करते हैं । यीशु अपने अनुयायियों को निर्देश देते हैं : “ यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे , तो वह अपने आपका इंकार करें , अपना क्रूस उठाएं और मेरे पीछे हो लें ” ( मत्ती १६ : २४ ) । हमें यह भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है कि हम अपने आप को संसार में निष्कलंक रखें ( याकूब १ : २७ ) “ तुम न तो संसार से और न संसार की वस्तुओं से प्रेम करो ! यदि कोई संसार से प्रेम करता है , तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है । जो कुछ संसार में है अर्थात शरीर की अभिलाषा , आंखों की अभिलाषा और जीवन का घमंड , वह पिता की ओर से नहीं , परंतु संसार की ओर से है ( १ यूहन्ना २ : १५ - १६ ) ।
मसीही पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलकर इसे पूरा कर पाएंगे । पवित्र आत्मा हमें निर्देश देगा और एक पवित्र जीवन जीने की शक्ति भी देगा । “ जब वह , अर्थात सत्य का आत्मा आएगा , तब वह तुम्हें संपूर्ण सत्य का मार्ग बताएगा ” ( यूहन्ना १६ : १३ ) । इस प्रयास का परिणाम एक परिवर्तित मन होगा - विश्वास का एक ऐसा जीवन जो आज्ञाकारीता को पैदा करेगा । “ कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ ” ( याकूब २ : २२ ) । मसीही अब अपने लिए नहीं , बल्कि यीशु के लिए जी रहे हैं ।
पवित्र आत्मा की सदा रहने वाली उपस्थिति मसीहियों के मन में गहन प्रेम को प्रेरित करती है । वह नए सिरे से जन्म पाने वाले अन्य मसीहियों के साथ सहभागिता की खोज करेगा । इस सहभागिता की एकजुटता एक दूसरे के साथ खुलकर विचार - विमर्श करने के लिए उत्साहित करती है । यह एक मसीही को सहारा प्रदान करती है और आध्यात्मिकता में बढ़ने के लिए सहायता प्रदान करती है ।
जब हम नए सिरे से जन्म लेते हैं , तो हमारा नाम जीवन की पुस्तक में लिख दिया जाता है । “ जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला , वह आग की झील में डाला गया ” ( प्रकाशितवाक्य २० : १५ ) । हमारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं और हम अपने मन में आनंद और शांति अनुभव करते हैं । शैतान हमें आज्ञा न मानने के लिए उत्साहित करके उद्धार के इस उपहार को हमसे चुराने का प्रयास करता है , किंतु यदि हम विश्वासी रहेंगे , तो परमेश्वर ने हमें सुरक्षा प्रदान करने और बचाने की प्रतिज्ञा की है । “ अब जो मसीह यीशु में है , उन पर दंड की आज्ञा नहीं । वे शरीर के अनुसार नहीं , वरन आत्मा के अनुसार जीवन बिताते हैं ” ( रोमियो ८ : १ ) । “ भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है , क्योंकि वर्तमान और आने वाले जीवन की प्रतिज्ञा इसी के लिए है ” ( १ तीमुथियुस ४ : ८ ) ।