सच्चे परमेश्वर पृथ्वी के सृष्टिकर्त्ता हैं
हमलोग पवित्र बाइबल में पढ़ते हैं: “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की; और परमेश्वर ने उनको आशीष दी” (उत्पत्ति १:२७- २८)। परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी सृष्टि का सर्वोच्च और सुप्रतिष्ठित बनाया। “प्रभु परमेश्वर ने उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और मनुष्य जीवित प्राणी बन गया” (उत्पत्ति २:७)। वह चाहते हैं कि मनुष्य उनकी सेवकाई करे, और उनकी स्तुति करे, जैसे लिखा है: “हे हमारे प्रभु और परमेश्वर! तू ही महिमा, आदर और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं रची हैं; वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गयीं” (प्रकाशित वाक्य ४:११)। इसलिए उसकी सृष्टि को उसकी आराधना करनी चाहिए और केवल उसकी ही; “अवश्य है कि आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें” (यूहन्ना ४:२४)।
परमेश्वर ने इस पृथ्वी को सुन्दर और उपजाऊ बनाया। छोटे-छोटे पौधे और पेड़ों के फल मनुष्य के आहार थे (उत्पत्ति १:२९)। सच्चे परमेश्वर ने अदन की वाटिका नामक सबसे सुन्दर वाटिका भी बनायी; और उसमें प्रथम पुरुष और स्त्री, आदम और हव्वा को रखा (उत्पत्ति २:८)।
संसार में पाप प्रवेश किया
परमेश्वर ने आदम और हव्वा को भले और बुरे के ज्ञान देनेवाले वृक्ष के फल को नहीं खाने के लिए निर्देश दिया (उत्पत्ति २:१७)। उनके वचन को पालन करने के बजाय वे शैतान के द्वारा वर्जित फल को खाने के लिए ललचाए गए (उत्पत्ति ३ अध्याय)। पाप और अपराध संसार में प्रवेश कर गया। "इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया और पाप के द्वारा मृत्यु आयी; और इसी रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गयी; क्योंकि सब ने पाप किया" (रोमियों ५:१२)। परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करके आदम और हव्वा उस सहभागिता से वंचित हो गए, जो परमेश्वर के साथ उनकी थी। इस कारण उन्हें अदन की वाटिका छोड़नी पड़ी। अब आदम को अपने माथे के पसीने की दैनिक रोटी खानी पड़ रही है (उत्पत्ति ३ अध्याय)। इस समय से मनुष्य को ऐसा करना पड़ा, और आज तक ऐसा करना पड़ता है।
आदम और उसके वंश को एक उद्धारकर्त्ता की आवश्यकता पड़ी; क्योंकि पाप इस संसार में प्रवेश कर चुका था। “वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं” (भजन संहिता १४:३)। “क्योंकि सब ने पाप किया है और वे सब परमेश्वर की महिमा से वंचित हो गए हैं” (रोमियों ३:२३)।
प्रतिज्ञाबद्ध उद्धारकर्त्ता
हमारे परमेश्वर एक प्रेमी परमेश्वर हैं। उसने मनुष्य को बिना आशा के नहीं छोड़ा। उनके अपराध के लिए उन्हें शापित करने के बावजूद स एक उद्धारकर्त्ता की प्रतिज्ञा भी की (उत्पत्ति ३:१५)। उसी समय से मनुष्य भेड़ और बकरियों का बलिदान चढ़ाने लगा। सच्चे परमेश्वर को खुश करने के लिए हाबिल ने सबसे पहला ऐसा चढ़ावा चढ़ाया (उत्पत्ति ४:४)। ये बलिदान प्रभु यीशु की ओर संकेत करनेवाले थे; क्योंकि वह “परमेश्वर का मेमना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना १:२९)। वह अपने पिता के प्रताप से आएं और हमारे पापों का मूल्य चुकाने के लिए क्रूस पर मर गए। “इसलिए परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए” (यूहन्ना ३:१६)। प्रभु यीशु ने हमारे पापों के लिए अपना पवित्र 'खून बहाकर अन्तिम बलिदान दिया (इब्रानियों ९: १२, २६)। हम विश्वास के साथ उसे देखें। प्रभु यीशु के नाम को छोड़ “किसी दूसरे नाम के द्वारा उद्धार सम्भव नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें”, और उद्धार पाना अवश्य है (प्रेरितों ४:१२)।
क्या परमेश्वर चाहते हैं कि मनुष्य उसकी आराधना करे?
परमेश्वर ने मनुष्य के दिल में धीरे-धीरे आराधना करने के इच्छा उत्पन्न की। परमेश्वर को हम देख नहीं सकते हैं। प्रभु यीशु कहते हैं: “परमेश्वर आत्मा है” (यूहन्ना ४:२४)। किसी ने भी उसे कभी नहीं देखा है (१ यूहन्ना ४:१ २)। किन्तु विश्वास की आंखों से हम उसे देख सकते हैं “जो अदृश्य है” (इब्रानियों ११:२७)। हमारे स्वर्गीय पिता वैसे आराधक को ढूंढ़ते हैं, जो आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करते हैं (यूहन्ना ४:२३)। प्रभु यीशु कहते हैं: “तू अपने प्रभु परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर!” (मत्ती ४:१०)। २ राजा १७:३६ में हम ऐसा पढ़ते हैं: “तुम प्रभु का भय मानना, उसी की दण्डवत् करना और उसी को बलि चढ़ाना।” भजन संहिता में हम परमप्रभु की स्तुति, उसकी सेवकाई और उसकी आराधना तथा उसके पास बलिदान के लाए जाने के विषय में बहुतायत से पढ़ते हैं। भजन संहिता १०३ का १ और २ पद कहता है: “हे मेरे मन, प्रभु को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे! हे मेरे मन, प्रभु को धन्य कह और उसके किसी उपकार को न भूलना!”
क्या परमेश्वर मूर्ति पूजा के विरूद्ध सावधान करके उनको आराधना की मनाही करते हैं?
परमेश्वर कहते हैं: “मैं प्रभु तेरा परमेश्वर हूं; ... तू मुझे छोड़ दूसरों को परमेश्वर करके न मानना! तू अपने लिए कोई मूर्त्ति खोद कर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में या पृथ्वी पर अथवा पृथ्वी के जल में है! तू उनको दण्डवत् न करना और न उनकी उपासना करना! क्योंकि मैं प्रभु तेरा परमेश्वर जलन रखनेवाला परमेश्वर हूं” (निर्गमन २०:२ - ५)। “तुम्हें किसी दूसरे को परमेश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं” (नर्गमन ३४:१४)। प्रेरित पौलुस कहते हैं: “हमें यह समझाना उचित नहीं कि ईश्वरत्व सोने, चांदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े हुए हैं” (प्रेरितों १७:२९)। फिलिप्पियों २:९ - ११ में हम पढ़ते हैं: “इस कारण परमेश्वर ने उसको अत्यन्त महान किया और उसको वह नाम दिया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है, ताकि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर तथा पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटने टेकें और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए हर एक जीम स्वीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु हैं।”
सच्चे परमेश्वर और मूरत के बीच अन्तर
प्रेरित पौलुस कहते हैं: “हम जानते हैं कि मूर्त्ति जगत में कोई वस्तु नहीं है, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं है; यद्यपि बहुत से ईश्वर कहलाते हैं" (१ कुरिन्थियों ८:४ - ५)। ऐसा भी लिखा है: “हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में है, उसने जो चाहा वही किया है; उन लोगों की मूरतें सोने-चांदी ही की तो हैं, वे मनुष्य के हाथ की बनायी हुई हैं। उनके मुंह तो रहता है, परन्तु बोल नहीं सकतीं; उनकी आंखें तो रहती हैं, परन्तु वे देख नहीं सकतीं। उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनकी नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकती। उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं और अपने कंठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। जैसी वे हैं, वैसे ही उनके बनानेवाले हैं और उन पर सब भरोसा रहनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे” (भजन संहिता ११५:३-८)। भविष्यवक्ता यिर्मयाह अध्याय ३२, पद १७ - १९ में कहते हैं: “हे प्रभु परमेश्वर, तू ने बड़े सामर्थ और बढ़ाई हुई भुजा से आकाश और पृथ्वी को बनाया है! तेरे लिए कोई भी काम कठिन नहीं है; महान और पराक्रमी परमेश्वर, जिसका नाम सेनाओं का प्रभु है, तू बड़ी युक्ति करनेवाला और सामर्थ के काम करनेवाला है; तेरी दृष्टि मनुष्यों के सारे चालचलन पर लगी रहती है, और तू हर एक को उसके चालचलन और कर्म का फल भुगताता है।”
जब इस्राएल ने पाप किया और मूर्ति पूजा प्रारम्भ हुई, तो परमेश्वर ने भविष्यवक्ता एलिय्याह को मूर्ति पूजा के विरोध में प्रचार करने के लिए बुलाया। १ राजा के १८ अध्याय में हमारे पास सच्चे भविष्यवक्ता एलिय्याह का बाल देवता के साढ़े चार सौ नबी को चुनौती देने का लेखा 'है। उसने कहा: 'जो ईश्वर आग से प्रत्युत्तर देगा, उसे ही सच्चा परमेश्वर माना जाएगा।' बाल देवता के साढ़े चार सौ नबियों ने सुबह से शाम तक अपने ईश्वर को पुकारा, “परन्तु न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया।”
जब एलिय्याह ने प्रार्थना की: “‘हे प्रभु, मेरी सुन, मेरी सुन कि ये लोग जान ले कि हे प्रभु तू ही परमेश्वर है, और तू ही उनका मन लौटा लेता है।’ तब परमेश्वर की आग आकाश से प्रकट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्थरों और धूमिल समेत भस्म कर दिया और गड़हे में का जल भी सुखा दिया” (१ राजा १८:३७-३८)।
मूर्ति पूजक पलिश्तियों ने जब परमेश्वर के सन्दूक को, जो परमेश्वर की उपस्थिति का प्रठीक था, उठाकर ले गए, तो उन्होंने उसे अपने मूर्ति की मंन्दिर, दागोन देवता के मन्दिर में रख दिया। दूसरे दिन “सवेरे देखो कि दागोन की मूर्ति प्रभु परमेश्वर के सन्दूक के सामने औन्धे मुंह भूमि पर गिरी पड़ी थी; और दागोन का सिर और दोनों हथेलियां डेवढ़ी पर कटी हुई पड़ी थी; केवल धड़ समूचा रह गया था” (१ शमूएल ५:४)।
सच्चे परमेश्वर को पुकारे
"टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता” (भजन संहिता ५१:१७)। “दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच-विचार छोड़कर प्रभु की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा; वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे, और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा” (यशायाह ५५:७)। प्रेरित पौलुस कहते हैं: "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर! तो तू और तेरा परिवार उद्धार पाएगा” (प्रेरितों १६:३१)। प्रेरित पतरस कहते हैं: “यह प्रतिज्ञा तुम्हारे लिए और तुम्हारी संतान और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिए भी है, जिनको हमारा प्रभु परमेश्वर अपने पास बुलाएगा ” (प्रेरितो २:३९)। प्रभु यीशु कहते हैं: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हूं और खटखटा रहा हूं; यदि कोई मेरी आवाज सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आऊंगा और उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ भोजन करेगा" (प्रकाशितवाक्य ३:२०)। क्या आप उसे अपने दिल के द्वार को खटखटाते हुए सुनते हैं? क्या आप उसे अन्दर आने देंगे? कृपया ऐसा करें! और आप अनन्त - अनन्त तक आशीषित होगा।