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एक समय था, जब इस संसार में कुछ भी नहीं था।न कोई मछली, न आकाश में कोई तारा, न कोई समुद्र और न ही सुन्दर-सुन्दर फूल।सब कुछ शून्य और अन्धकार पूर्ण था।किन्तु परमेश्वर था। परमेश्वर के पास एक सुन्दर योजना थी। उसने एक सुन्दर संसार के विषय में सोचा और जब उसने सोचा, तब ही उसने उसकी रचना कर डाली। उसने उसकी रचना शून्यता में से की। जब परमेडवर ने किसी भी वस्तु की रचना की, तो उसने मात्र इतना भर कहा, “हो जा” और वह वस्तु बन गयी।
“आओ, एक मनुष्य को देखो! जो कुछ मैंने किया था, वह सब उसने मुझे बता दिया है। कहीं यही तो मसीह नहीं है?” (यूहन्ना ४:२९)।
हमलोग पवित्र बाइबल में पढ़ते हैं: “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की; और परमेश्वर ने उनको आशीष दी” (उत्पत्ति १:२७- २८)। परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी सृष्टि का सर्वोच्च और सुप्रतिष्ठित बनाया। “प्रभु परमेश्वर ने उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और मनुष्य जीवित प्राणी बन गया” (उत्पत्ति २:७)। वह चाहते हैं कि मनुष्य उनकी सेवकाई करे, और उनकी स्तुति करे, जैसे लिखा है: “हे हमारे प्रभु और परमेश्वर! तू ही महिमा, आदर और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं रची हैं; वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गयीं” (प्रकाशित वाक्य ४:११)। इसलिए उसकी सृष्टि को उसकी आराधना करनी चाहिए और केवल उसकी ही; “अवश्य है कि आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें” (यूहन्ना ४:२४)।