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समस्त कहानियों के बीच यीशु मसीह के जन्म की कहानी मसीहियों के मन के सबसे निकट है । सारे युगों में यह एक महान आश्चर्यकर्म है । इसमें मानव जाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम प्रदर्शित है । मनुष्य ने पाप के कारण खुद को परमेश्वर की संगति से अलग कर दिया । अदन की वाटिका में आदम और हव्वा ने पाप करने के पश्चात परमेश्वर ने उनसे उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा की ( उत्पत्ति ३ : १५ ) । जो कुछ खो गया था , उसे वापस लाना या उद्धार करना परमेश्वर की योजना थी ।

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१. युद्ध और युद्ध की खबरें मत्ती २४:६ २. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर चढ़ाई करेंगे मत्ती २४:७ ३. अकाल ,भूकंप , महामारी मत्ती २४:७ ४. अधर्म का बढ़ना , प्रेम का ठंडा पड़ना मत्ती २४:१२ ५. झूठे मसीह , झूठे शिक्षकें मत्ती २४:११,२४ ; मरकुस १३:२२ ६. नूह के दिनों का समय मत्ती २४ : ३७ ७. सूरज, चांद और तारों में चिन्हों लूका २१ : २५ ८. देश - देश के लोगों पर घबराहट सहित संकट लूका २१ : २५ ९. भय के कारण लोगों में जी ना रहना लूका २१ : २६

एक समय था, जब इस संसार में कुछ भी नहीं था।न कोई मछली, न आकाश में कोई तारा, न कोई समुद्र और न ही सुन्दर-सुन्दर फूल।सब कुछ शून्य और अन्धकार पूर्ण था।किन्तु परमेश्वर था। परमेश्वर के पास एक सुन्दर योजना थी। उसने एक सुन्दर संसार के विषय में सोचा और जब उसने सोचा, तब ही उसने उसकी रचना कर डाली। उसने उसकी रचना शून्यता में से की। जब परमेडवर ने किसी भी वस्तु की रचना की, तो उसने मात्र इतना भर कहा, “हो जा” और वह वस्तु बन गयी। १) तू मुझे छोड़ दूसरों को ईइबर कहकर न मानना।

यीशु 5 minutes

प्रार्थना एक नम्र विनती है। जो यीशु मसीह का नाम में पिता परमेश्वर से करना है। स्वयं को स्वर्गीय प्रेमी पिता के सामने प्रकट करना ही प्रार्थना है। प्रार्थना में हमारी आत्मा शब्दों के द्दारा या हमारे मनों के विचार के द्दारा परमेश्वर से बाते करती है। परमेस्वर चाहता है कि हम उसके साथ बातें करें। हम उसके पास धन्यवाद के साथ या विनती के साथ या फिर निराशा के साथ आ सकते है। हमारे पास अपना कोई योग्यता नहीं है; हम सिर्फ यीशु मसीह के द्दारा प्रार्थना में परमेश्वर के पास आ सकते हैं।